
ग्रामीण क्षेत्रों में हरे-भरे प्रतिबंधित पेड़ों की कटाई लगातार जारी है। माफिया कीमती पेड़ों पर आरियां चलाकर लकडिय़ों से मोटी रकम कमा रहे हैं।
दुर्ग / ग्रामीण क्षेत्रों में हरे-भरे प्रतिबंधित पेड़ों की कटाई लगातार जारी है। सूचना के बाद भी संबंधित विभाग के जिम्मेदार स्थल पर नहीं पहुंच पाते। ऐसे में माफिया कीमती पेड़ों पर आरियां चलाकर लकडिय़ों से मोटी रकम कमा रहे हैं। मामले में ठोस कार्रवाई नहीं होने से पूरे जिले भर में लकड़ी तस्कर सक्रिय हैं। दशकों पुराने पेड़ों की कटाई कर लकड़ी तस्कर आरा मील व ईंट भट्ठाें में बेचकर मालामाल हो रहे हैं। आरा मशीन संचालक भी तस्करों से पूरा लाभ उठा रहे हैं। वो भी इन लकडिय़ों को और महंगे दर पर बेचकर खजाना भर रहे हैं। उन्हें पर्यावरण संरक्षण से कोई लेना-देना नहीं है। इससे मैदानी इलाकों में हरियाली खत्म हो रही है, इससे पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ रहा है। इसमें प्रशासन की कोई रोक-टोक नहीं होने के कारण अवैध कटाई करने वालों के हौसले बुलंद हैं।
*पर्यावरण संरक्षण में बड़ी बाधक है लकड़ी तस्कर
इसमें ये देखा जा रहा है कि विभागीय निष्क्रियता के कारण प्रतिबंधित कहुआ वृक्ष, आम, रिया एवं इमारती लकडिय़ों को बेधड़क काटे जा रहे हैं। इसमें सरकार को आर्थिक नुकसान तो हो रहा है, पर पर्यावरण संरक्षण में ये लोग बड़ी बाधा पहुंचा रहे हैं। फिर भी राजस्व एवं वन विभाग दोनों का अमला ऐसे लोगों पर ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।
मुखबिर की भूमिका में अधिकारी
सूत्रों के अनुसार गुंडरदेही परिक्षेत्र -दुर्ग की सीमा से लगे ओटेबंद व अंडा में लकड़ी तस्कर ज्यादा सक्रिय हैं। जब कभी किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति या मीडिया के जरिए संबंधित अधिकारी को अवैध लकड़ी तस्करी की सूचना दी जाती है तो अधिकारी के पहुंचने के पहले तस्करों की पहले सूचना पहुंच जाती है। इससे वे लकडिय़ों को इधर-उधर करने में सफल हो जाते हैं। इससे यह कहना गलत नहीं होगा कि वन विभाग के अधिकारी तस्करों व आरा मिल संचालकों के मुखबिर बने हुए हैं।